Aparna Sharma

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लेखनी कहानी -#१५ पार्ट सीरीज चैलेंज पार्ट -4

#15 पार्ट सीरीज चैलेंज 


*महादेव शिव शंकर की कथाओं में निहित ज्ञान और प्रामाणिकता*

पार्ट - 4
*सती और शिव*

सतरूपा ने महादेव से विवाह की इच्छा प्रकट की थी ! सतरूपा ब्रह्मांड की पहली स्त्री! महादेव के पुरूषोचित सौंदर्य, सादगी,भोलापन , सहायता की भावना और औरतों के प्रति सम्मान इतने सारे विलक्षण गुण देखकर दिल हार बैठी थी ! 
महादेव ने उसे कहा था कि वो सतयुग के अंत में सती के रूप में जन्म लेगी ! 
कालांतर में वही घटित हुआ! 
ब्रह्मा के पुत्र दक्ष की कई कन्याऐं थीं एक से एक सुन्दर पर सभी साधारण कन्याएं ! दक्ष की इच्छा थी उसकी कम से कम एक पुत्री परम सुन्दरी होने के साथ विदुषी और तेजस्वी हो ! इसी उद्देश्य से उसने शिव की कठोर तपस्या की और उनसे वरदान मांगा कि उसके घर में आदि शक्ति पुत्री के रूप में जन्म ले !
शिव ने उन्हें बताया कि -" आदि शक्ति शिव की है ! वो युवती होने पर उन्हीं का वरण करेगी , जबकि तुम महादेव शिव से नफ़रत करते हो क्योंकि उन्होंने तुम्हारे पिता ब्रह्मा का पांचवा सिर काट दिया था !" 
परन्तु दक्ष ने मन में सोचा - "वो जब मेरी पुत्री होगी तो मेरी ही इच्छा से विवाह करेगी , मैं उसे कभी महादेव शिव कौन है पता ही नहीं चलने दूंगा " उसने जिद की कि मंजूर है आदि शक्ति ही मेरे घर में जन्म ले ! 
उसके मन की बात भांपते हुए शिव ने कहा - " वो आदि शक्ति है कभी भी उसका अपमान मत करना ! वो सदा के लिए तुम्हें छोड़ कर चली जाएगी और तुम्हारा भी सर्वनाश हो जाएगा!  
दक्ष के सभी शर्तें मान लेने पर सती ने ( जो कि सतरूपा थी आदि शक्ति) दक्ष के घर कन्या रूप में जन्म लिया!  
अब यहां आपको बता दें कि दक्ष महादेव शिव से अत्यधिक नफ़रत करता था , इतनी कि उसने अपने पूरे राज्य में एलान किया था कि मेरे राज में शिव की पूजा करना तो दूर कोई उसका नाम भी लेगा तो उसे सजा दी जायेगी !
उसने अपनी सबसे प्यारी पुत्री सती को कभी पता ही नहीं चलने दिया कि शिव कौन है? ? वो शिव को ईश्वर मानता ही नहीं था ! उसके राज्य में सिर्फ विष्णु की पूजा होती थी ! 
सती मंदिर में विष्णु के भजन गाती ,आरती पूजन करती और सखियों के संग खेलती नाचती कब युवती हो गई पता ही नहीं चला! 

परन्तु विधाता का लिखा कभी बदल सकता है क्या?  
एक दिन प्रजापति दक्ष ने विष्णु का एक भव्य मंदिर बनवाया जिसके लिए एक बेहतरीन कारीगर द्वारा विष्णु की शेषशाई अत्यंत सुंदर प्रतिमा बनवाई ! 
प्राण प्रतिष्ठा हेतु जब मूर्ति को मंदिर में स्थापित करने ले जाया जाने लगा तो मूर्ति हिल भी नहीं पा रही थी !
हजारों हाथियों ने खींचा ,सैनिकों ने जोर लगाया पर मूर्ति टस से मस नहीं हो रही थी!  
सती भी देख रही थी कि उसके पिता कितने अधिक परेशान हैं ! 
वह क्रोध में भर कर मूर्तिकार के पास गई ! 
-" ये तुमने कैसी मूर्ति बनाई है? उठ क्यों नहीं रही है? मंदिर में स्थापित कैसे होगी ? " 
" राजकुमारी जी, यह मूर्ति तब तक न तो उठेगी न ही स्थापित होगी जब तक शिव लिंग या विग्रह विष्णु के साथ ना हो , कभी भी कोई पूजा शिव के बिना पूर्ण हो ही नहीं सकती है! " 
यहां पहली बार २१ वर्ष की सती ने शिव का नाम सुना ! 

" शिव! ये कौन हैं ?" 
" ब्रह्मा, विष्णु और शंकर तीनों शिव से ही उत्पन्न हुए हैं! अत: शिव की पूजा के बिना कोई मूर्ति मंदिर में स्थापित नहीं हो सकती है! " 
"जब तुम्हें पता है तो शिवलिंग विष्णु के साथ स्थापित कर क्यों मंदिर में नहीं ले जा रहे हैं?"
"क्या आपको पता नहीं है कि आपके पिता शिव को बिल्कुल पसंद नहीं करते हैं, इस राज्य में शिव की पूजा वर्जित है। मुझे अपने प्राण नहीं खोना है! " 
आप मुझे एक छोटा सा शिव लिंग बना कर दीजिए, मैं रखूंगी ! 
मूर्ति कार ने छोटा सा शिवलिंग सती को दिया !उसने चुपके से जाकर वो शिवलिंग विष्णु के बगल में रख दिया!  
उसने मूर्ति कार से शिव के बारे में पूछा!  
उसने सामने कैलाश पर्वत की ओर इशारा किया -"वहां रहते हैं वे " 
सती ने जब कैलाश को देखा तो एक अजीब सा खिंचाव महसूस किया! 
वो चल पड़ी उस ओर !
नीचे तलहटी में उसे दधीचि ऋषि और कयी साधू संत मिले ! दधीचि ऋषि ने उसे शिव, रुद्राक्ष और बेलपत्र के बारे में बताया! वो बहुत प्रभावित हुई उनकी सरलता,सादगी और शांत आनंद में डूबे स्वभाव से!  
वो दधीचि ऋषि के दिए रुद्राक्ष और बेलपत्र को लेकर महल में पहुंची !
जैसे किसी अलग ही दुनिया से आई हो! 
महल में ६-८ सिपाहियों ने विष्णु की मूर्ति को उठा लिया था! दक्ष बेहद आश्चर्य चकित और खुश था जहां हजारों हाथी और सिपाही मिल कर भी नहीं उठा पा रहे थे मात्र ६-७ सिपाहियों ने बड़ी आसानी से उठा लिया था! 
मूर्ति मंदिर में स्थापित कर दी गई!  
पूजा के समय जब पंडित शिवलिंग की पूजा करने लगे तब दक्ष की निगाह गई! फिर तो तहलका मचना ही था ! 
दक्ष ने विष्णु के बगल में शिव लिंग देखा तो क्रोध से भर उठा ! " ये शिवलिंग किसने रखने की हिम्मत की ? " 
सती बोली -" पिता जी मैने रखा है! आप बहुत परेशान थे ना इसलिए! " 
तभी वहां दधीचि ऋषि और अन्य ऋषि मुनि आ जाते हैं! " हर हर महादेव " 
दक्ष कहता है - किसने बुलाया आपको ?
" किसी ने नहीं " 
"जहां भी शिव की पूजा होती है चले आते हैं! " 
 " हमारे प्रभु भी ऐसे ही भोले हैं एक बेलपत्र पर प्रसन्न हो दौड़े आते हैं! " 
दक्ष को विश्वास नहीं होता है। 
"बुलाओ अपने शिव को " 
दधीचि सती के हाथ पर एक बेलपत्र देते हैं -" आंखें बंद कर मन से उन्हें पुकारो " सती मन से शिव को पुकारती है और आंखें खोलती है तो सामने धुंध से महादेव प्रगट होते हैं! 
ये सती की महादेव से पहली मुलाकात होती है। 
पहली ही नज़र में सती अत्यंत गौर वर्ण , सौम्य ,मधुर मुस्कान लिये शिव को अपलक देखती रह जाती है!  
यहां से शुरू होती है ब्रह्मांड की पहली लव स्टोरी 💞

ज्ञान : - आपका किसी के लिए नि:स्वार्थ भाव से किया गया पुण्य आगे किसी और जन्म में भी फल सकता है। आपके द्वारा किया गया कोई भी अच्छा या बुरा कार्य अपने परिणाम देता ही है - जैसे महादेव के द्वारा ब्रह्मा का सिर काटने का परिणाम दक्ष की नफरत के रूप में सामने आता है और सतरूपा की इज्ज़त की रक्षा करने का फल सती के प्रेम के रूप में सामने आता है। 

प्रामाणिकता: - कनखल हरिद्वार में ३.५ किलोमिटर दूर है। यहां सती माता का मंदिर है कहते हैं यहां सती का जन्म हुआ था! सती की जन्म स्थली के पास ही सती कुंड है! कनखल हरिद्वार की उपनगरी है। यह कभी राजा दक्ष की राजधानी थी ! 

अपर्णा गौरी शर्मा

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1 Comments

Abhinav ji

01-Jun-2023 09:03 AM

Very nice 👍

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